यह लगभग 1000 ईसा पूर्व में संकलित किया गया था।
अथर्ववेद में कुल 5987 मंत्र हैं, जो मुख्य रूप से जादू-टोना, औषधि, शांति और शुद्धि से संबंधित हैं।
अथर्ववेद को दो प्रमुख शाखाओं में विभाजित किया गया है -
1- शौनक शाखा और
2- पैप्पलाद शाखा।
शौनक शाखा में मंत्रों का व्याख्यात्मक स्वरूप है, जबकि पैप्पलाद शाखा में मंत्रों का संक्षिप्त स्वरूप है।
अथर्ववेद में जादू-टोना, औषधि, शांति और शुद्धि से संबंधित मंत्रों का संग्रह है।
इन मंत्रों का उपयोग वैदिक काल में विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता था।
अथर्ववेद में वैदिक काल की लोक-संस्कृति और जीवन-दर्शन का प्रतिबिंब मिलता है।
अथर्ववेद के अध्ययन से वैदिक काल की धार्मिक, सामाजिक और लोक-संस्कृति का ज्ञान प्राप्त होता है।
यह वेद वैदिक काल की विविध पहलुओं के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
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